Thursday, October 05, 2017

GOVINDAraja Bhagavam Tava Suprabhatam भगवं तव सुप्रभातंम्

गोविन्दराज भगवं तव  सुप्रभातंम्


हरिः ॐ               
दैवत्रयात्मकाश्वत्थ रूप अरुणउदयारभ्यतॆ |  
उत्तिष्ठ दैव दर्पघ्नं  उत्तिष्ठ लोक माह्निकं  |
उत्तिष्टोत्तिष्ट  अश्वत्थ  उत्तिष्ठ  चंद्रलापतिं
उत्तिष्ठ लक्ष्मिकांत  त्रिभुवने मंगलं कुरु   | |

अपरः परत्व पुरुषः परब्रह्म वृक्ष 
मूल प्रधूर्ध्व प्रसरः  अधवः प्रपत्र  |
पुष्पांत्य बीजचक्रः महतत्व वृध्द्धि
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं       |  |

वैश्व्वानरो स्वप्न सुशुप्ति  प्राज्ञा: 
ज्ञानात्मनाद तुरीय स्थित बिंदुघोष |
सौम्यत्व रौद्रसमवेत व्यक्तः प्रकृतिः
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं      |  |

प्रलयः कृतांत दंडो वैवस्वतस्य
आकाशतत्व प्रतिभेद मिति कालचक्र |
रौद्रत्व युक्त प्रतिहार प्रति दुष्ट तत्वैः
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं     |  |

चंद्रार्क पंचशूलः ताराधिकारी
दर्शंतु बाण भरितः भरदिवै संघै  |
अमरादिदेव वृंदः शस्त्रः प्रतीकै
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं     |  |

प्रावाह्य दक्षिण भीमरथै तटं च  |  
देवस्य दक्षिणपथे सिनिवालि मंदै : | 
आग्नेय कोण मार्गे वृंदावनस्थै : | 
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं     |  |

पिप्पलैर्बंधु कृतकाष्ट मुनिवर्यगस्त्यै
परि पालयं पिंगल पद्म नाभै  |
क्रूर ग्रह स्थानेषु सुख सौख्य चरति
गोविंदराज भगवं तव सुप्रभातं     |  |

वेताळ पंच विंशति निर्णायकत्वा
पुर्णाहुति स्वधाने कापट्य हरणं   |
नृपविक्रमार्क विजयं रहस्यकथया
गोविंदराज चरणं शरणं प्रपद्दॆ       |  |

गोखेटराज वामे वनदेवि धामै : |
विशाल प्रांगण ऊर्ध्व जलकन्य रत्नै: |
निंबकाश्वथ तरू मह फणिराज दक्षै: |
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये     |

रक्षाटमल्ल महभद्र शार्दूल रामा
मोक्षार्थ काम धर्मः पुरुषार्थ पूर्ण  |
वृक्ष स्वरूप द्रविडाद्याराध्य नाथै |  
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये   | १० |

रक्षार्थ राम धनुषः दृष्ट्वातु वामे |  
कृष्णै सुदर्शन धरः प्रमथः प्रशंसा |
शंखः करेण वरदः करुणांक हस्त
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये    | ११ |

भवरोग राजरजसा धिक्कार जननं 
संहार सार तमसा नैषेद्य पूर्ण |
सत्यत्वनित्य गृहितः कुंभोद्भवादात् |    
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये   | १२ |

हरिभक्ति पूर्ण पयसा स्फुटवीर्य युक्तै :
निर्माण दद्य घटयः परि छिन्न भिन्न |
गोविंद नाट्य माया नतुजान्य लीलां
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये   | १३ |

गजवदन रुद्र हनुमान नागादि यक्षै:
भज वृक्ष राज नामं उपतिष्ठ वृंदै :|
कृपयाभिलाष पूर्णं फलितं कृतस्य
अश्वत्थ रूप चरणं शरणं प्रपद्ये    |१४|

सर्वेप्सितः प्रदं भिषज सर्व क्लेश विनाशनं |भूताय भूतवासाय  भीतो भयात्  प्रमुच्यतॆ |
सद्भूतयॆ सर्व दुःखॆभ्यॊ मुक्तो भवति मानव  |            

इति श्री ऋग्वेद संहिता भाष्याचार्य श्री सीतारामाचार्य द्वैपायनाचार्य कट्टी उमरजकर उपनामाख्येन विरचित श्री मद् गोविंदराज सुप्रभातम् संपूर्णं ||
          || श्री कृष्णार्पणमस्तु ||

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