Thursday, October 05, 2017

*GOVINDAraj Parandham Ramam Smare Vruksharajam परंधाम रामं स्मरॆ वृक्ष राजं

परंधाम रामं स्मरॆ वृक्ष 

परंधाम रामं स्मरॆ वृक्ष राजं 
ओंकार रूपादि देवं हरेशं । ऊर्ध्वादि मूलं अधो शाख वृक्षं 
लक्षानुलक्षम् योनिर्निवेशं । मनुर्जन्म सार्थं स्मरॆ वृक्ष राजं ॥ १ ॥
परंधाम रामं स्मरॆ राम कृष्णं  
मनुर्नीति  रक्षार्थ् साक्षिर् महर्षिं । कुंभोद्भवं नारदानुग्रहित्वं 
सृष्टिर् विधिर् युक्त वस्तुर्नि पूज्यं । अनाद्यादि आदिं स्मरॆSश्वत्थ रूपं  || २ ॥
परंधाम रामं स्मरॆ राम कृष्णं  
अवतार दशकॆ वरं विश्वरूपं । विधिहरहरिर् वेष्टि राघवं योगिवेद्यं 
यदा सिध्ध वंशं तदंशं अनंतम् । गुरुत्मंत मरुतं स्मरॆ त्रिगुण रूपं     ॥ ३ ॥ 
परंधाम रामं स्मरॆ राम कृष्णं  
भजे श्वत्थवृक्षं त्वजै रक्ष मल्लं । अनाथादिनाथं निजं आश्रयस्थं 
चंद्रलाचित् पूर्ण लक्ष्मी सनाथं । धनुर्बाण सहितं स्मरॆ भक्त निचयं   ॥ ४ ॥
परंधाम रामं स्मरॆ राम कृष्णं
भीमरथिं वहति दक्षिण गामिनित्वां । महस्थान गोविंद द्वंद्वैक्य नंदं 
दार्द्यादि राज्यं परं पुण्य प्रांतं । गोविंदराजं स्मरॆ भक्तियुक्तं         ॥ ५ ॥
परंधाम रामं स्मरॆ राम कृष्णं
द्रविडार्य संयुक्त विभवादिराजं । राराजितं गोप वृंदादि पालं 
गोभाव भक्तं परिपालयंतं । गॊसेव्य सिरिराय श्री राम कृष्णं          ॥ ६ ॥
परंधाम रामं स्मरॆ राम कृष्णं
                                                          
                           ......  श्री तुळसात्मज श्रीधराचार्यः          ||  श्री वृक्षराज अश्वत्थ  अर्पण मस्तु ॥

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