Thursday, November 23, 2017

Veda wangmaya (वेद वाङमय तालिका)

  
कौषितक
एत्तरेय
गुह्य सुत्रः शांखायन आश्वलायन
धर्मसुत्रः वशिष्ट 
एत्तरेय बाष्कल्य कौषितक
होतारः  
यजुर्वेद
अध्याय ४० मन्त्रः १९७५  
उपवेद – धनुर्वेद शुक्ल 
सुत्रः- कात्यायन 

कृष्ण –
सुत्रःआपस्तंब,
हिरण्यकेषि
बौधायन, भारद्वाज,मानव, वैखानस  
शुक्ल
माध्यंदिन काण्व (शाखाः १६ शेष -२)
शतपथ (मा)
शतपथ (का)
बृहदारण्यक (मा) बृहदारण्यक (का) गुह्य सुत्रःपारस्कर
धर्मसुत्रः शंखलिखित 
बृहदारण्यक
ईशावास्य शिवसंकल्प 
 कृष्ण यजुष
कृष्ण
तैत्तरिय मैत्रायणि काठक कपिष्ठल
तैत्तरिय
तैत्तरिय मैत्रायणि गुह्यसुत्रः=
श्रौतसूत्रः =
धर्मसुत्रः
तैत्तरिय महानारायण मैत्रि
कठ श्वेताश्वतर
सामवेद 
ऋचः १८१० 
उपवेद – गांधर्व  
सुत्रः लाट्यायन,द्राह्मायण आर्षेय, 
कौथुम राणायनि जैमिनी  (शाखाः–१०००
शेषः -३)
तांड्यमहा ब्राह्मण,
पंचविंश,
षड् विंश, विंश,
सामविधान.   
गुह्यसुत्रः गोभिल, खादिर
धर्मसुत्रः गौतम
केन, छांदोग्य
उद्गाता
अथर्वण ऋचः ६००० कर्म कांड २० प्रपाठक ३४ अनुवाक १११ सूक्त ७३१ मंत्र ५८३९
स्थापत्य, इतिहास, पुराण, सर्प,
पिशाच्य, असुर,
इत्यादि 
सूत्र – वैतान
शौनक पैप्पलाद (शाखाः ९ शेष -२)
गोपथ
गुह्यसुत्रः कौशिक
प्रश्न, मुंडक,
मांडुक्य,
अथर्व,
शिका
इत्यादि ५२      
ब्रह्माः






                                           
  वैदिक साहित्य काल संबंधित अनुमान =
प्रथमः     सर्  मैक्समुल्लर – वेद निर्माण काल गणना इ स पू १२०० / ६०० 
द्वितीयः  सर्  जर्मन विद्वान् विंटर निटज् - वेद निर्माण काल गणना इ स पू २५०० / २०००
तृतीयः  श्री  तिलक तथा  याकोबी - वेद निर्माण काल गणना (ग्रह नक्षत्र तिथिगति आधार )इ स पू ४५००
चतुर्थः    श्री अविनाशचंद्र दास तथा पावगी - वेद निर्माण काल गणना ऋग्वेदस्थित  वर्णित भूगर्भ विषयक   
साक्षी अन्वयो  कित्येक  लक्ष वर्ष पूर्व निर्माण:     
संहिता : मंत्र विभाग
ब्राह्मण :  कर्म कांड गद्य विवेचन
आरण्यक : कर्म कांड उद्येश  विवेचन
उपनिषद् : आत्मा तथा  परमात्मा द्वयस्याभावोऽस्ति संबंध दार्शनिक एवं ज्ञान पूर्वक वर्णन
श्रौतसूत्रः = वैदिक यज्ञ संबंधी कर्मकांड, गुह्यसुत्रः = गृहस्थ दैनिक यज्ञ,
धर्मसुत्रः = सामाजिक नियम, शल्बसुत्रः = श्रौत सूत्रःस्य संबंधितः यज्ञ स्थान यज्ञ वेदि यज्ञ निर्माण आदि विश्रुत वर्णन तथा 
भारतीय ज्यामिति संबंधितः प्राचितम श्रोत ग्रंथः
ऋग्वेद संहिता : यह दस मंडलोमे विभक्त हो गया है | सूक्त रुपमे देवतावोंके स्तुति सम्मिलित है |  यह भव्य उदात्त और काव्यमय देखाजाता है | 
इसमेका अधिकतम सुक्तोंकी रचना पंच नदीयों की क्षेत्र मे हुई है | ये सूक्तादि  होतृ गणसे पठी  जाति थि | उस समय आर्य संस्कृति अफगाणिस्तानसे  गंगा-यमुना नदी तट तक फ़ैले  हुए थे | ऋग्वेदमे  कुभा ( काबूल ), सुवास्तु (स्वात ), क्रमु (कुर्रम),गोमती (गोमल ), सिंधु ,गंगा , यमुना , सरस्वती  
तथा शतुद्रि  ( सतलज् ), विपाशा ( व्यास ), परुष्णि (रावी ), असिवनि ( चिनाब ),और   वितस्ता ( झैलम ) पांच नदियों के सिंचित भरत वर्ष के क्षेत्र मे आर्य संस्कृति का उदय  ऐसा माना जाता है  |
यजुर्वेद संहिता : इस संहिता मे यज्ञ विषयक मंत्रों का समुच्चय है | यज्ञ के समय अध्वर्यु गणसे मंत्र पठी  जाति थि | ऋग्वेद मे आर्योका कार्य पंच 
नदीयों की क्षेत्र मे है | ततः कुरु –पांचाल, कुरु –सतलज तथा यमुना यहि क्षेत्र आर्य संकृतिका केंद्र बिंदु था | ऋग्वेद मे धर्मोपासना को प्राधान्यता 
रहते किंतु यजुर्वेद मे शुक्ल यजुष ,और कृष्ण यजुष दो विभाग,  शुक्ल यजुषमे स्वरयुक्त, छंदोबद्ध मन्त्र सहित गद्यात्मक भाग भी है |   कृष्ण यजुष
मे केवल मंत्रोका समुच्चय है |
साम वेद संहिता : इसमे गायन योग्य मंत्रोम्का संचय है | यज्ञ मे जिस देवतावोंकेलिये आवाहन किया जाता था | देवतावोंको आवाहित मंत्र उद्गातृ 
उचित स्वरयुक्त स्तुति मंत्र गाया करते थे | प्रायः ऋग्वेद सूक्त ही गाते थे | अतः सामवेद मे ऋचांये सम्मिलित है | भारतीय  संगीत संस्कृति  का 
मूल इसी संहिता मे उपलब्ध है |
अथर्वण वेद संहिता :  यज्ञो मे इस संहिता का संबंध बहुत कम है | यह विभिन्न प्रकारोंकी औषधिया तथा रोग, रुग्ण लक्षण ,रोगात्मक किटाणु
वोंका दमन ,शमन  भूत पिशाच्य उच्चाटन ,सर्प दंश विषयक मंत्र व प्रक्रिया, यंत्र शास्त्र, स्थापत्य शास्त्र इत्यादियोंका उल्लेख है | ये सब 
मंत्रोम्का प्रयोग ब्रह्मा लोग किया करते थे |
                        समग्र प्राणिमात्रोंका,मानव जातिका सुखमय जीवन केलिये,सातत्यता केलिये  सभी नियोजनाये उल्लिखित चतुर्वेद मे दिखांये 
देता है | ये चारही संहितावोंका समग्र एकत्रित समुच्चय हुवा करता था | लेकिन  यज्ञ प्रक्रिया के संबंध, यज्ञ सिद्धि के संबंध विनियोग के हेतु  
श्री व्यास महर्षि ने चार भागो मे विभजित कर दिया |     
||  लोका  समस्ताः सुखिनो भवंतु  ||

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